मुझे या तो बदलना है या बदल जाना है
दोस्तों इतना बड़ा आर्टिकल लिखने का मेरा मकसद मेरी लेखन शेली से परिचित कराना और उससे अपने आपको महान साबित करना नहीं है और ना ही मै ये चाहता हूँ की हरकोई इसे पढ़े और मेरे विचारो को समझने से ज्यादा मुझे समझने में लग जाये
और मुझे कोई महान आत्मा समझ कर सारी दुनिया को ही हिला कर रख देने की प्रेरणा लेले
तो मै आपको इतना सा बता दूँ की मै लोसल के एक छोटे से इलाके मे रह रहा हूँ और हमेशा से ही मुझे एक साधारण सी जिन्दगी जीनी है ना तो कोई क्रन्तिकारी बनना है और नाही इस समाज को ये बताना है की तुम ये क्यूँ कर रहे हो और तुम्हे ये करना चाहिए और ये नहीं.
मुझे किताबो से ही सब कुछ सिखने को मिला और मै हमेशा से ही ओसत से निचे कभी नहीं आया चाहे हमेशा टॉप नहीं किया हो लेकिन हमेशा टॉप से निचे आने के बारे में भी नहीं सोचा, सुमित्रा में पढ़कर ये तो पता मुझे कभी का ही लग गया था की लोग जो कहते है वो अक्सर करते नहीं है और आज तो आप किसी की शक्ल को देखकर भी ये नहीं बता सकते की आप के सामने वाला कोई चोर है या इमानदार
दोस्तों अगर वक्त हो तो एक बार बस सोच लेना,
ये अलग बात है की जब में 10वी में था तब से ही लिख रहा हूँ लेकिन कल जो मुझे गुस्सा वो शायद कभी ही आया होगा
कल इसी लोसल बस स्टैंड पे एक शक्श मुझे यह कह रहा था की “यार इस बच्ची के साथ अच्छा नहीं किया और केवल 10 ही मिनट के बाद वो शक्श 2 लडकियों को देखकर ये बोलने लग गया की क्या मस्त लग री है यार“
फिर कैसे बदल सकता है ये जहाँ
तो फिर सोचिये मै उन लोगो को कैसे समझा सकता हूँ की भाई तू गलत है और तुझे यह नहीं करना चाहिए, समाज में अगर कुछ गलत हो रहा है तो वो तब तक चुप बैठे रहेंगे जब तक उनको कोई नुकसान नहीं पहुंचा दे लेकिन जब कोई उनको नुकसान पहुंचाता है तो फिर वो आवाज उठाते है लेकिन कोई उनके साथ नहीं होता क्यूंकि फिर दुसरो के साथ भी तो वोही तो होता है वे भी तो तब तक आवाज नहीं उठाएंगे जब तक कोई उनका कोई कुछ नहीं उखाड़ ले
सारा सब कुछ एक चक्र में चलता रहता है और वो कहते रहते है की जमाना ख़राब है, ये सब कुछ कोई सोचे तो सही की क्यों हो रहा और कर कौन रहा है
कल सीकर में जो ज्यादती की घटना हुई क्या कोई सोच सकता है की कोई एक मासूम सी बच्ची के साथ ऐसा कैसे कर सकता है, क्या उसे जरा भी दया नहीं आई, लोग कहते है की बलात्कार के मामले इसलिए बढ़ रहे है क्यूंकि लड़कियां छोटे कपडे पहन रही है लेकिन उस बच्ची के साथ तो ऐसा कुछ नहीं था ना,
शर्म नहीं आती क्या उन्हें जिन्होंने एसा कुछ भी किया है उसे तो कहाँ तो जीने का अधिकार है कहाँ मरने का........
बची खुची कसर पूरी कर दी उन लोगो ने जिन्होंने सीकर बंद करके उस मासूम के साथ होने की कोशिश की ,
अरे! सीकर बंद करके अगर उसके साथ होना चाहते हो तो उस वक्त कहाँ थे
जब पूरा सीकर वहीँ का वहीँ था और ये सब कुछ उसी सीकर में हुआ था, वो ये सब करने वाला भी तो सीकर का ही होगा, क्यों नहीं तुम लोगो ने ही उसे पकड़ कर उसे इतना तडपाया होता की उसे भी पता चल जाता जो दर्द उस मामूम को हुआ है
उन लोगो में से कुछ भाग वो भी था जो उस वक्त तो जोर शोर से चिल्ला रहा था लेकिन जैसे ही बाहर निकला अपनी ओकात पे आने वाला था और शहर के बाहर सड़क पे जा रही लड़की को देख कर उसका पीछा कर रहा था या फिर उसके उपर ऐसे शुद्ध वचनों का बखान कर रहा था जो अगर कोई उसकी बहन के लिए कहे तो शयद उस शक्श को जिन्दा न रहने दे ,
वो लोग जो कल सीकर बंद कर आगे आकर फोटो निकलवा रहे थे वो लोग येही के तो है, किसी ने उस वक्त पुलिस की 12 क्यूँ नहीं बजायी जब वो गलत चालान काट रहा था और तुम लोगो ने सिर्फ 100 का नोट देकर निकल जाने की ख़ुशी में 500 की शराब पी थी
जब तुम लोगो ने रिश्वत को ही सब कुछ मानकर डॉक्टर से नकली विकलांग प्रमाण पत्र बनवाया था, जब डॉक्टर बाहर की दवाई लिख रहा था और तुम लोग चुप चाप चले गए,
जब कोई पुलिस वाला बिना किराया दिए बसों में सफर करता है और तुम लोग उसे साब कहते हो, जब कोई डॉक्टर केवल इस बात के लिए चक्कर कटवाता है की उसकी नियत में कंकर होते है
जब कोई आपसे अतिरिक्त पैसे चार्ज करता है और आप लोग उसे ये कहते है की साब पैसे कितने भी लग जाये लेकिन काम हो जान चाहिए बल्कि बिना उससे ये पूछे की रशीद इतने की ही है तो फिर ये चार्ज क्यों?
और कल है की इसी में जीने वाला हर एक बंदा खुद को क्रांतिकारी मानकर सब्जी वाले की सब्जियां गिरा रहा था,
कल बाज़ार बंद करने वालो ने ये क्यूँ प्लान नहीं बनाया की हम आज की कमाई हम उस मासूम के इलाज के लिए देंगे ताकि उसका इलाज सही से हो सके, ये अख़बार में जो उस मासूम को लाया जा रहा है वो केवल 4 – 5 दिन के लिए ही है उसके बाद न तो प्रशासन उसे पूछने वाला है और ना ही वो लोग जो आज क्रांतिकारी बने तथाकथित तोर पर उसके साथ खड़े है
कल जो सीकर को बाज़ार में करोडो का नुकसान हुआ है उसकी भरपाई तो नहीं हो पायेगी लेकिन उस कमाई का अगर आधा भाग भी उस बच्ची को मिल जाता तो शायद उसकी परवाह सही से हो पाती
ये तो मान कर चलिए दोस्तों ये अखबारों की सुर्खिया इतनी जल्दी भुलाई जाती है जितनी शायद जल्दी नमक भी पानी में नहीं मिलता क्योंकि अपने देश में मीडिया एक शसक्त माध्यम बन गया जो कुछ भी कर सकता है
उदाहरण जानना चाहते हो तो आपको पता है दिल्ली में कुछ वक्त पहले पूरा देश एक हुआ था आज उसके घरवाले किस हालत में है कोई नहीं जानता, अभी कुछ वक्त पहले सीकर में भी एक और पीडिता सुर्खियों में आई थी लेकिन आज उसके माली हालत के बारे में पूछने की हिम्मत किसी में भी नहीं है क्यों की फिर से एक नया मुद्दा मिला जाता है कभी भंवरी देवी तो कभी आनंदपाल तो कभी इन्द्राणी और तो कभी कोई भ्रष्टाचार:-
मीडिया जैसे सशक्त माद्यम के होते हुए भी आज भ्रष्टाचार इतना बढ़ा है की बढ़ने में भी शायद हाथ इसी का दिखाई दे रहा है, कही किसी को ये तक पता नहीं लग पाता की हम किसी को शिकायत करे तो भी किसको?
और जब किसी को शिकायत कर ही नहीं सकते तो फिर एक ही तरीका बचता है की अपने क्या लगेगा चल ही तो रहा है अपना काम तो हो ही रहा है..........
लेता किसी का कुछ भी नहीं है दोस्तों एक दिन आएगा जब आप के साथ अगर कुछ गलत हो रहा हो और दुसरे ये सोच रहे हो की मेरा क्या ले रहा है तो अपना सारा दर्द सामने आ जाता है और सारी ज़माने की कमियां भी सामने आ ही जाती है
मुझे तो रात भर नींद नहीं आई सारी रात येही सोचता रहा की ये लोग कब बदलेंगे लेकिन फिर सोचा “गौरव” ये लोग बदलेंगे भी तो क्यों, मुझे तो सुरुआत भी लोसल से करनी चाहिए सीकर तो दूर की बात है:-
दोस्तों किसी को तो आगे आना ही होगा, खुद को बदलो इन मासूमो को जीने दो इतना महफूज करवा दो उनको की कम से कम वो आइटम की श्रेणी से तो बहार आ सके वो बच्चिया तो जीवन जीने की आश ले सके जींनहे अभी जिन्दगी जीनी है जो ढंग से अभी बड़ी भी नहीं हुई है, उनकी तोतली जुबान से अभी तक शब्द भी बाहर आने सही से शुरू नहीं हुए :-
बस आखिर में २ ही पंक्तिया की-
#गौरु तो जिन्दा था अपनी कलम की ताकत पे,
आज वो ही तो ख़ुदकुशी की बात कर रही है
लोग साथ है सडको पे ,मासूम मोत के आगोश में,
हकिकत में तो अखबारों में सुर्खिया बन रही है
देखते है की ये कितने दिन की #सुर्खिया बची है